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अस्सलामु अलैकुम रीडर्स, जैसा कि हमने पहले ही बता दिया है कि मुसलमान इस रात में अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं और इबादत में मशगूल रहते हैं। इसके अलावा, शब-ए-बरात के रोज़े (Shab E Barat Ka Roza) की भी बहुत अहमियत है, जो अगले दिन यानी 15 शाबान को रखा जाता है और बेहतर तो यह है कि 14 और 15 शाबान को रोज़ा रखा जाए।
अहादीस-ए-मुबारका के मुताबिक, हमारे नबी मुहम्मद ﷺ शाबान के महीने में अक्सर रोज़े रखा करते थे। एक हदीस का मफहूम है:
“जब शब-ए-बरात की रात आए तो तुम इस रात में इबादत करो और दिन में रोज़ा रखो।” (इब्न माजा)
इस हदीस से मालूम होता है कि शब-ए-बरात का रोज़ा मुस्तहब है और इससे गुनाहों की माफी मिलती है।

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Shab E Barat Ke Roze Ki Fazilat
शा’बान वो महीना है जिसमें हज़रत मुहम्मद ﷺ ने किसी भी और महीने से ज़्यादा रोज़े रखे, सिवाय रमज़ान के। 15 शा’बान का रोज़ा मुस्तहब है, और नबी करीम ﷺ हर इस्लामी महीने की 13, 14 और 15 तारीख़ को रोज़े रखते थे।
इसलिए, अगर हम सुन्नत पर अमल करना चाहें, तो 15 शा’बान का रोज़ा रख सकते हैं, क्योंकि रोज़ा एक इबादत है और अल्लाह (सुब्हानहु व तआला) की तरफ़ से अजर हासिल करने का ज़रिया भी है। इसके इलावा, एक रिवायत भी 15 शा’बान के रोज़े की तस्ज़ील करती है, जो इसके मुस्तहब होने को और मज़ीद मज़बूत करती है।
मौलाना ग़ुलाम सुबहानी Farmate Hai
हदीस: मौला अली कर्रम अल्लाहु तआला वजहुल करीम से रिवायत है कि नबी करीम ﷺ फरमाते हैं, जब शाबान की पंद्रहवीं रात आ जाए तो इस रात को क़ियाम करो और दिन में रोज़ा रखो। क्यूंकि रब तबारक व तआला ग़ुरूबे आफ़ताब से आसमान-ए-दुनिया पर ख़ास तजल्ली फरमाता है और कहता है
“है कोई बख़्शिश चाहने वाला कि उसे बख़्श दूँ?
है कोई रिज़्क़ तलब करने वाला कि उसे रिज़्क़ दूँ?
है कोई मुसीबतज़दा कि उसे आफ़ियत दूँ?
है कोई ऐसा? है कोई ऐसा?”
और यह अल्लाह तआला फजर तक फरमाता रहता है। (इब्न माजा)
हदीस: उम्मुल मोमिनीन सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा से रिवायत है कि हुज़ूर ﷺ ने फरमाया:
“मेरे पास जिब्रील आए और कहा कि यह शाबान की पंद्रहवीं रात है, इस रात में अल्लाह तआला जहन्नम से इतने लोगों को आज़ाद फरमाता है जितने बनी कल्ब के बकरियों के बाल हैं। मगर:
- काफिर,
- अदावत रखने वाले,
- रिश्ता काटने वाले,
- कपड़ा लटकाने वाले,
- वालिदैन की नाफरमानी करने वाले,
- शराब की आदत रखने वाले,
इनकी तरफ़ नज़र-ए-रहमत नहीं फरमाता।
Shabe Barat Ka Roza Rakhne Ki Dua (Niyat)
नवैतु अन असूमा ग़दन लिल्लाही तआला मिन शहरी शाबान।
shabe barat ke roze ki niyat
तरजुमा: “मैंने अल्लाह तआला के लिए शाबान के महीने का कल का रोज़ा रखने की नीयत की।”
यह नीयत आप सेहरी के वक्त या रोज़ा रखते वक्त दिल से कर सकते हैं। ज़ुबान से कहना मुस्तहब है, लेकिन असल नीयत दिल का इरादा होता है। अल्लाह तआला हमें इस मुबारक रोज़ा रखने की तौफीक अता फरमाए, आमीन!
Shab E Barat Kyu Manate Hai
शब-ए-बरात इस्लाम की एक अहम और फज़ीलत वाली रात है, जो 15 शाबान की रात होती है। इसे लैलतुल बरा’अह “Lailatul Bara’ah” भी कहा जाता है, जो माफ़ी, मग़फ़िरत और रहमत की रात है। इस रात अल्लाह तआला अपने बंदों पर ख़ास रहमत फरमाता है, उनके गुनाह माफ़ करता है और तक़दीर लिखता है।
शब-ए-बरात मनाने की वजह
🔹 इस रात अल्लाह तआला अपने बंदों की मग़फ़िरत करता है और उनकी दुआएं क़बूल करता है।
🔹अगले साल का मुक़द्दर, रिज़्क, ज़िन्दगी और मौत का फ़ैसला किया जाता है।
🔹 हमारे नबी ﷺ ने इस रात इबादत और अगले दिन रोज़ा रखने की तरगीब दी है।
🔹 हज़रत मुहम्मद ﷺ ने इस रात जन्नतुल बक़ी जाकर मरहूमीन के लिए दुआ की थी, इसलिए क़ब्रिस्तान जाना मुस्तहब है।
Shab E Barat Ke Roze Ki Niyat
Niyat (Arabic): نَوَیْتُ أَنْ أَصُوْمَ غَدًا لِلَّهِ تَعَالَى مِنْ شَهْرِ شَعْبَانَ۔
Read Full Shab E Barat Ke Roze Ki Niyat In Hindi, Urdu & Arabic